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अ॒स्य मे॑ द्यावापृथिवी ऋताय॒तो भू॒तम॑वि॒त्री वच॑सः॒ सिषा॑सतः। ययो॒रायुः॑ प्रत॒रं ते इ॒दं पु॒र उप॑स्तुते वसू॒युर्वां॑ म॒हो द॑धे॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

asya me dyāvāpṛthivī ṛtāyato bhūtam avitrī vacasaḥ siṣāsataḥ | yayor āyuḥ prataraṁ te idam pura upastute vasūyur vām maho dadhe ||

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ॒स्य। मे॒। द्या॒वा॒पृ॒थि॒वी॒ इति॑। ऋ॒त॒ऽय॒तः। भू॒तम्। अ॒वि॒त्री इति॑। वच॑सः। सिसा॑सतः। ययोः॑। आयुः॑। प्र॒ऽत॒रम्। ते॒ इति॑। इ॒दम्। पु॒रः। उप॑स्तुते॒ इत्युप॑ऽस्तुते। व॒सु॒ऽयुः। वा॒म्। म॒हः। द॒धे॒॥

ऋग्वेद » मण्डल:2» सूक्त:32» मन्त्र:1 | अष्टक:2» अध्याय:7» वर्ग:15» मन्त्र:1 | मण्डल:2» अनुवाक:3» मन्त्र:1


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब बत्तीसवें सूक्त का आरम्भ है, इसके प्रथम मन्त्र से मनुष्यों को क्या करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं।

पदार्थान्वयभाषाः - जो (अवित्री) रक्षा आदि के निमित्त (उपस्तुते) समीप में प्रशंसा को प्राप्त (द्यावापृथिवी) सूर्य और भूमि (मे) मेरे (अस्य) इस प्रत्यक्ष (वचसा) वचन के सम्बन्ध से (भूतम्) उत्पन्न हुए (तायतः) जल के समान आचरण करते (सिषासतः) वा अच्छे प्रकार विभाग होने के समान आचरण करते जिनसे (प्रतरम्) पुष्कल (इदम्) इस (आयुः) जीवनको (वसूयुः) धनकी चाहना करता हुआ मैं (पुरः) आगे (दधे) धारण करता हूँ (ते) वे सब जगत् का सुख सिद्ध करते हैं (वाम्) उनकी उत्तेजना से मैं (महः) बहुत सुख को धारण करता हूँ ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को भूमि और अग्नि का सेवन जो युक्ति के साथ किया जाता है तो पूर्ण आयु और धन की प्राप्ति हो सकती है ॥१॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मनुष्याः किं कुर्य्युरित्याह।

अन्वय:

येऽवित्री उपस्तुते द्यावापृथिवी मेऽस्य वचसो भूतमृतायतः सिषासतो ययोः सकाशात्प्रतरमिदमायुः वसूयुः सन्नहं पुरो दधे ते सर्वस्य जगतः सुखं साध्नुतो वा तयोः सकाशादहं महत्सुखं दधे ॥१॥

पदार्थान्वयभाषाः - (अस्य) (मे) मम (द्यावापृथिवी) सूर्य्यभूमी (तायतः) उदकमिवाचरतः (भूतम्) उत्पन्नम् (अवित्री) रक्षादिनिमित्ते (वचसः) वचनस्य (सिषासतः) संभक्तुमिवाचरतः (ययोः) (आयुः) जीवनम् (प्रतरम्) पुष्कलम् (ते) (इदम्) (पुरः) (उपस्तुते) उप समीपे प्रशंसिते (वसूयुः) आत्मनो वस्विच्छुः (वाम्) तयोः (महः) महत्सुखम् (दधे) ॥१॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरग्निभूम्योः सेवनं युक्त्या क्रियते चेत्तर्हि पूर्णमायुर्धनं च प्राप्येत ॥१॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)

या सूक्तात विद्वानाची मैत्री व स्त्री गुणांचे वर्णन असल्यामुळे या सूक्ताच्या अर्थाबरोबर मागच्या सूक्तार्थाची संगती जाणली पाहिजे.

भावार्थभाषाः - भूमी व अग्नीचा योग्य उपयोग माणसांनी युक्तीने केल्यास धन व दीर्घायुष्याची प्राप्ती होऊ शकते. ॥ १ ॥